Wings of fancy

Friday, March 22, 2013

'मृत्यु प्रिया'/हाइकू

नश्वर जग
तुम नित्य सदा से
मैंने ये पाया
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तुम निष्पक्ष
आज अराजक है
ये जग जब
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दयावान तू
उबे,थके,दुखी के
कर गहती
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छिद्र बहुत
जग ने कर डाले
गले लगा ले
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नौका पाई थी
भव से तरने को
इसे नसाया
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ये रिश्ते नाते
हैं लक्ष्य मे बाधक
तू मिलवा दे
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तुझे दुलारूं
मृत्यु प्रिया जाने क्यूं
सब डरते
-विन्दु

Wednesday, March 13, 2013

सुखद छांव

मैं श्रमित
जिन्दगी की जद्दोजहद से व्यथित
चली जा रही थी
अज्ञात गन्तव्य की ओर
प्रेममय संवाद सुनकर रुकी
सघन छांव ने दिया ठौर
मतवाली लतिका
तरु के उर पर करती बिहार
गद गद था तरु
जो लतिका बनी गले का हार
तूफां हो या भानु-ताप
थामे थे इक-दूजे का हाथ
मैं 'भाग्यवान ज्यादा',था विवाद का मसला
सुनकर हृदय मेरा मचला और बोला-
मैं धन्य तुम दोनों से कहीं अधिक हूं
शीतल छांव का भाजक एक पथिक हूं
त्याग समर्पण प्रीति के प्राण हैं
चैन बंटता है जिसकी सुखद छांव में
प्रेम ही तो जगत का सृजनहार है।
-विन्दु