जय श्री कृष्ण!
जन्माष्टमी के उपलक्ष में एक प्रयास निवेदित है,कृपया समीक्षा करें-
त्याग,प्रेम अवतार श्याम
प्रेम रीति तो सिखाइये।
बृज-गोपियों सा त्याग रस
कलिकाल में भी डालिये।।
लोक-हित छोड़ा मंजु बृज
समोद मथुरा को धाए।
बही अश्कों की धार,जब
मेघ भावना के छाए।
तुमको भी जीता जिसने
हमें नीति वह सिखाइये।।
ज्ञान में ही मग्न ऊधौ
प्रेम भाव थे न मानते।
पर भक्त के विकार कृष्ण
चुन-चुन सब हैं निकालते।
उद्धव सम परोक्ष ज्ञान
अब हम सबको दिलाइये।।
है प्राप्ति में सुसुप्त प्रेम
विरह में जाग जाता है।
प्रेमी,इस वियोग में तो
ठौर-ठौर दिख जाता है।
डाँट मारी गोपियो ने
मत ये योग सिखलाइये।।
यदि कण-कण समाया श्याम,
उन्हें गिनके बताइए।
हम एक से ही मर मिटीं
वाणी-बाण न चलाइये।
जो ज्ञान को भी मात दे
वो ही प्रीति सिखलाइये।।
बृज-गोपियों सा त्याग-रस...
-विन्दु
''Solace of tacit emotion, Sight beyond horizon, A Soothing touch in pain, The wings of fancy,a queer way To seek the pearls in ocean.''
Wings of fancy
Tuesday, August 27, 2013
Saturday, August 17, 2013
*परिवर्तन*
परिवर्तन है सत्य सदा
अपनाना इसको सीखे।
इसमे ही है नव-जीवन
नूतन पथ बुनना सीखें।।
नूतनता खुशियों की जननी
उत्सव नित्य मनायें हम।
खुश रहकर कुसमय काटें,
समय से न कट जाएं हम।
जीवन-रंग सजाने को
नयन-अश्रु पीना सीखें।।
शोक,हर्ष,उत्थान-पतन
हमें तपा कुन्दन करते।
अगम सिन्धु की झंझा में
कर्म सदा नौका बनते।
निष्कामी आराधक बन
जग-वन्दन करना सीखें।।
प्राणि मात्र से प्रीति करें
प्रेम पात्र जो बनना है।
अब जग जा,ओ रे मन!
मग यदि सुगम बनाना है।
प्रीति सुमन की चाह अगर
जड़ सिंचित करना सीखें।।
परिवर्तन है..
-विन्दु
सादर
अपनाना इसको सीखे।
इसमे ही है नव-जीवन
नूतन पथ बुनना सीखें।।
नूतनता खुशियों की जननी
उत्सव नित्य मनायें हम।
खुश रहकर कुसमय काटें,
समय से न कट जाएं हम।
जीवन-रंग सजाने को
नयन-अश्रु पीना सीखें।।
शोक,हर्ष,उत्थान-पतन
हमें तपा कुन्दन करते।
अगम सिन्धु की झंझा में
कर्म सदा नौका बनते।
निष्कामी आराधक बन
जग-वन्दन करना सीखें।।
प्राणि मात्र से प्रीति करें
प्रेम पात्र जो बनना है।
अब जग जा,ओ रे मन!
मग यदि सुगम बनाना है।
प्रीति सुमन की चाह अगर
जड़ सिंचित करना सीखें।।
परिवर्तन है..
-विन्दु
सादर
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