Wings of fancy

Friday, September 27, 2013

बत्तख और भैंस/बाल कहानी

तालाब की लहराती लहरों में किलकारियां करती हुई भैंस को देख पास में तैरती बत्तख ने पूछा- ''बहन आज बहुत खुश लग रही हो,क्या बात है?''
भैंस-''सच्ची बहन,आज मैं बहुत खुश हूं।''
बत्तख-''अरे! क्या हुआ,मुझे भी बताओ।''
भैंस-' बहन,दो दिन पहले मैं कानपुर गई थी,जहां गंगा में नहाया,तब से मेरे रग-रग में जल की गंदगी और बदबू समाई हुई थी। आज सुन्दर हरियाली से घिरे इस छोटे से तालाब में नहाकर मानो मेरा मन तक धुल गया हो। सुहानी पुर्वइया...ऐसा लग रहा है जल नृत्य कर रहा हो।''
बत्तख ने कहा-अच्छी बात है बहन तुम्हे यह वातावरण अच्छा लग रहा है,लेकिन गंगा तो भारत की पवित्रतम् नदी है। इसके जल के आचमन से ही अपवित्रता धुल जाती है। और तुम गंगा की गंदगी इस छोटे से पोखर में धुलने की बात कर रही हो! गंगाजल कभी अपवित्र नहीं होता बहन।''
भैंस की पीठ पर बैठा बगुला बीच में बोल पड़ा-''जैसे आपकी धवलता...कभी कम नहीं होती,चाहे कीचड़युक्त पानी में तैरो या स्वच्छ जल में।''
बत्तख गर्व से मुस्कराई परन्तु भैंस ने कहा-''बगुले भाई, मैं काली हू, मुझे दोष भी पहले दिखते है,मनन करने की क्षमता मुझमें कहा! सतही तौर पर मुझे जो आभास हुआ सो बताया।''
बत्तख और बगुला दोनो यह सोचकर शांत हो कि गए गंगा जी के सम्पर्क में सभी विवेकशील ही तो नही आते हैं,जो इनकी अखण्ड पवित्रता को समझे। मानव अपने स्वार्थ के लिए स्वच्छता और शुद्धता को भी कुचल रहे हैं। इससे हम पशु भी त्रस्त हैं।



-वन्दना तिवारी

5 comments:

  1. इस सुन्दर कहानी के लिए आप बधाई की पात्र हैं!

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    1. आपका बहुत आभार आदरणीय!

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  2. कथा के माध्यम से सुंदर चिंतन..............

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  3. पर्यावरण सन्देश देती सुन्दर कहानी के लिए बधाई आदरणीया वंदना जी

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