नारी गाथा
नारी के दोनो नयनों से
अश्रुओं की धारा बहती है
तुम कान खोलकर सुनकर देखो
वे चीख चीख क्या कहती है
ना जाने इस दुनिया मे
मेरा कब होगा उत्थान।
कब मुझको यहां प्यार मिलेगा
और मिलेगा कब सम्मान।
सदियों से ही मिलते आए
मेरे पद-चिन्हों के निशान
किन्तु अभी तक दुनियां मे
नारी न बन पाई महान।
बाहर की तो बात ही छोड़ो
घर मे भी होता अपमान।
जैसे उसका अस्तितिव ही न हो
जैसे न हो उसमे प्रान।
जिसने जीवन दान दिया
उसे मार करते अभिमान
जिसके बल पर जीवित हो
है नारी का ही बलिदान।
नारी का सहयोग मिला
तब जाके देश बना बलवान।
कर्तव्य तुम्हारा बनता है
अब तुम समझो इसकी आन
प्रतिउपकार करो न भले ही
पर कुछतो मानो एहसान
सबको ही सुख देती है
खुद सबके दुख लेलेती है।
तुम कान खोल सुन कर देखो...
- मृदुल भारद्वाज
टड़ियावां,हरदोई