उद्येश्य बदल गया
भावों की पहरन,शब्द
का परिमाण बदल गया।
साहित्य,दर्पण समाज का
धुंधला हो गया
प्रतिद्वंदी तलवार का,कलम
लोकेष्णा का दास बन गया
बाढ है,तो बारिश भी है
आऽज...
भावेश का बहाव बदल गया
साहित्य का,
उद्येश्य बदल गया।
परिवेश बदल गया।।
परिवेश बदल गया
-विन्दु
''Solace of tacit emotion, Sight beyond horizon, A Soothing touch in pain, The wings of fancy,a queer way To seek the pearls in ocean.''
Wings of fancy
Friday, April 26, 2013
Tuesday, April 23, 2013
'चिरानन्द'
उद्वगन चित्त
है पहचान
असिद्ध बुद्धि की।
आता कहां उफान
सिद्ध दाल में
बटलोई की।
स्वरूप में
स्थित होना ही
है स्वस्थ होना।
निज मान,अपमान
आनन्द की चाबी
औरों के हाथ
क्या देना।
चिरानन्द है
स्वयं में
बस है पहचानना।
-विन्दु
है पहचान
असिद्ध बुद्धि की।
आता कहां उफान
सिद्ध दाल में
बटलोई की।
स्वरूप में
स्थित होना ही
है स्वस्थ होना।
निज मान,अपमान
आनन्द की चाबी
औरों के हाथ
क्या देना।
चिरानन्द है
स्वयं में
बस है पहचानना।
-विन्दु
Sunday, April 14, 2013
क्या जीवन है/हाइकू
१
बालू का स्थल
जलाभास रश्मि से
तपती प्यास
२
प्रीति सुमन
नागफनी का बाग
व्यर्थ खोजना
३
तृप्ति कामना
घी दहकाए ज्वाला
पूर्ति आहुति
४
जीन यात्रा
हर क्षण रहस्य
रोना या गाना
५
गन्तव्य कहां!
लमकन जारी है
क्या जीवन है!
-विन्दु
बालू का स्थल
जलाभास रश्मि से
तपती प्यास
२
प्रीति सुमन
नागफनी का बाग
व्यर्थ खोजना
३
तृप्ति कामना
घी दहकाए ज्वाला
पूर्ति आहुति
४
जीन यात्रा
हर क्षण रहस्य
रोना या गाना
५
गन्तव्य कहां!
लमकन जारी है
क्या जीवन है!
-विन्दु
Monday, April 8, 2013
'मुझे बचाना'
१
आ जाओ खेलो
शीतल छाया देंगे
मित्र बुलालो
२
थक जाओ ज्यों
आराम करो सब
पंखा नीचे त्यों
३
पक्षी देखोगे
मेरे आंगन आओ
चूजे भी पाओ
४
छतरी खोई?
बारिश से बचना
आ जाओ नीचे
५
भूखे,प्यासे हो?
फल खाओ या चूसो
घर लौटो जब
६
क्यूं पहचाना?
पेड़ मुझे कहते
मुझे बचाना
-विन्दु
(बाल साहित्य)
आ जाओ खेलो
शीतल छाया देंगे
मित्र बुलालो
२
थक जाओ ज्यों
आराम करो सब
पंखा नीचे त्यों
३
पक्षी देखोगे
मेरे आंगन आओ
चूजे भी पाओ
४
छतरी खोई?
बारिश से बचना
आ जाओ नीचे
५
भूखे,प्यासे हो?
फल खाओ या चूसो
घर लौटो जब
६
क्यूं पहचाना?
पेड़ मुझे कहते
मुझे बचाना
-विन्दु
(बाल साहित्य)
Tuesday, April 2, 2013
'अंश हूं तुम्हारा'
जब जिन्दगी के किनारों की
हरियाली सूख गई हो
पक्षी मौन होकर
अपने नीड़ों मे जा छुपे हों
सूरज पर ग्रहण की छाया
गहराती ही जा रही हो
मित्र स्वजन कंटीली राहमें
अकेले छोड़कर चल दिये हों
संसार की सारी नाखुशी
मेरे ललाट को ढक रही हो
तब मेरे प्रभु!
मेरे होठों पर हंसी की
उजली रेखा बनाए रखना
अंश हूं तुम्हारा,
कायरता को न सौंप देना।
-विन्दु
हरियाली सूख गई हो
पक्षी मौन होकर
अपने नीड़ों मे जा छुपे हों
सूरज पर ग्रहण की छाया
गहराती ही जा रही हो
मित्र स्वजन कंटीली राहमें
अकेले छोड़कर चल दिये हों
संसार की सारी नाखुशी
मेरे ललाट को ढक रही हो
तब मेरे प्रभु!
मेरे होठों पर हंसी की
उजली रेखा बनाए रखना
अंश हूं तुम्हारा,
कायरता को न सौंप देना।
-विन्दु
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