जब जिन्दगी के किनारों की
हरियाली सूख गई हो
पक्षी मौन होकर
अपने नीड़ों मे जा छुपे हों
सूरज पर ग्रहण की छाया
गहराती ही जा रही हो
मित्र स्वजन कंटीली राहमें
अकेले छोड़कर चल दिये हों
संसार की सारी नाखुशी
मेरे ललाट को ढक रही हो
तब मेरे प्रभु!
मेरे होठों पर हंसी की
उजली रेखा बनाए रखना
अंश हूं तुम्हारा,
कायरता को न सौंप देना।
-विन्दु
simply superb.
ReplyDeleteदिल के पास हैं लेकिन निगाहों से बह ओझल हैं
क्यों असुओं से भिगोने का है खेल जिंदगी।
जिनके साथ रहना हैं ,नहीं मिलते क्यों दिल उनसे
खट्टी मीठी यादों को संजोने का है खेल जिंदगी।
किसी के खो गए अपने, किसी ने पा लिए सपनें
क्या पाने और खोने का है खेल जिंदगी।
उम्र बीती और ढोया है, सांसों के जनाजे को
जीवन सफर में हँसने रोने का है खेल जिंदगी।
किसी को मिल गयी दौलत, कोई तो पा गया शोहरत
मदन बोले , काटने और बोने का ये खेल जिंदगी।
many of thanks sir!
ReplyDeleteWhat the witty and practicle discription of 'Life' u presented.really nice!
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति,आभार.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर! इस रचना का अंत बहुत ही उत्तम तरीके से किया। अप्रतिम! बधाई!
ReplyDeleteसादर आभार आपका!
ReplyDeleteबहुत दिनों के बाद आपने ब्लाग पर दस्तक की,आपकी टिप्पणी पढ मन प्रसन्न हुआ!
शुक्रिया।
ReplyDeleteसादर
ठीक कहा है ... बस वो प्रभू का सहारा ही ऐसे में काम आता है ...
ReplyDeleteअच्छा लिखा है ...
बहुत शुक्रिया नासवा महोदय।
ReplyDeleteआप यहां पधारे इसके लिए आभारी हूं आशा है आगे भी आपका सहयोग बना रहेगा।
नव वर्ष मंगलमय हो।
सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार . नवसंवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनायें हम हिंदी चिट्ठाकार हैं
ReplyDeleteBHARTIY NARI
PLEASE VISIT .
आपका आभार शालिनी बहन!
ReplyDeleteआपको भी नवसंवत्सर की ढेरों शुभकामनाएं।
बहुत सुन्दर......
ReplyDeleteअनु
वाह बहुत ही सुन्दर.........गहरे भाव........अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर........इंशाल्लाह आगे भी आना होगा ।
ReplyDeleteआदरणीय अंसारी आपका ब्लाग पर हृदयातल से स्वागत् है।
ReplyDeleteआप यहाँ पधारे इसके लिए बहुत आभार।
सादर
अंतर्मन की गहन सोच को दर्शाती अति सुन्दर रचना । हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसादर,
विजय निकोर
आदरणीय निकोर सर:
Deleteब्लॉग पर आपके आगमन से मुझे अतीव प्रसन्नता हुई।
आपकी प्रतिक्रिया हमारा सम्बल हैं, सहयोग बनाये रखें आदरणीय।
सादर
तब मेरे प्रभु!
ReplyDeleteमेरे होठों पर हंसी की
उजली रेखा बनाए रखना
अंश हूं तुम्हारा,
कायरता को न सौंप देना।
बस यही प्रार्थना सदा रहे . बहुत सुन्दर लिखा है . सच्ची
bahut achchaa likha
ReplyDeleteअति गहन सोच ! प्रभावशाली आभिव्यक्ति। हार्दिक बधाई।
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