Wings of fancy

Tuesday, April 2, 2013

'अंश हूं तुम्हारा'

जब जिन्दगी के किनारों की
हरियाली सूख गई हो
पक्षी मौन होकर
अपने नीड़ों मे जा छुपे हों
सूरज पर ग्रहण की छाया
गहराती ही जा रही हो
मित्र स्वजन कंटीली राहमें
अकेले छोड़कर चल दिये हों
संसार की सारी नाखुशी
मेरे ललाट को ढक रही हो
तब मेरे प्रभु!
मेरे होठों पर हंसी की
उजली रेखा बनाए रखना
अंश हूं तुम्हारा,
कायरता को न सौंप देना।
-विन्दु

18 comments:

  1. simply superb.

    दिल के पास हैं लेकिन निगाहों से बह ओझल हैं
    क्यों असुओं से भिगोने का है खेल जिंदगी।

    जिनके साथ रहना हैं ,नहीं मिलते क्यों दिल उनसे
    खट्टी मीठी यादों को संजोने का है खेल जिंदगी।

    किसी के खो गए अपने, किसी ने पा लिए सपनें
    क्या पाने और खोने का है खेल जिंदगी।

    उम्र बीती और ढोया है, सांसों के जनाजे को
    जीवन सफर में हँसने रोने का है खेल जिंदगी।

    किसी को मिल गयी दौलत, कोई तो पा गया शोहरत
    मदन बोले , काटने और बोने का ये खेल जिंदगी।

    ReplyDelete
  2. many of thanks sir!
    What the witty and practicle discription of 'Life' u presented.really nice!

    ReplyDelete
  3. बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति,आभार.....

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर! इस रचना का अंत बहुत ही उत्तम तरीके से किया। अप्रतिम! बधाई!

    ReplyDelete
  5. सादर आभार आपका!
    बहुत दिनों के बाद आपने ब्लाग पर दस्तक की,आपकी टिप्पणी पढ मन प्रसन्न हुआ!

    ReplyDelete
  6. शुक्रिया।
    सादर

    ReplyDelete
  7. ठीक कहा है ... बस वो प्रभू का सहारा ही ऐसे में काम आता है ...
    अच्छा लिखा है ...

    ReplyDelete
  8. बहुत शुक्रिया नासवा महोदय।
    आप यहां पधारे इसके लिए आभारी हूं आशा है आगे भी आपका सहयोग बना रहेगा।
    नव वर्ष मंगलमय हो।

    ReplyDelete
  9. सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार . नवसंवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनायें हम हिंदी चिट्ठाकार हैं

    BHARTIY NARI
    PLEASE VISIT .

    ReplyDelete
  10. आपका आभार शालिनी बहन!
    आपको भी नवसंवत्सर की ढेरों शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  11. बहुत सुन्दर......

    अनु

    ReplyDelete
  12. वाह बहुत ही सुन्दर.........गहरे भाव........अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर........इंशाल्लाह आगे भी आना होगा ।

    ReplyDelete
  13. आदरणीय अंसारी आपका ब्लाग पर हृदयातल से स्वागत् है।
    आप यहाँ पधारे इसके लिए बहुत आभार।
    सादर

    ReplyDelete
  14. अंतर्मन की गहन सोच को दर्शाती अति सुन्दर रचना । हार्दिक बधाई।
    सादर,
    विजय निकोर

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीय निकोर सर:
      ब्लॉग पर आपके आगमन से मुझे अतीव प्रसन्नता हुई।
      आपकी प्रतिक्रिया हमारा सम्बल हैं, सहयोग बनाये रखें आदरणीय।
      सादर

      Delete
  15. तब मेरे प्रभु!
    मेरे होठों पर हंसी की
    उजली रेखा बनाए रखना
    अंश हूं तुम्हारा,
    कायरता को न सौंप देना।

    बस यही प्रार्थना सदा रहे . बहुत सुन्दर लिखा है . सच्ची

    ReplyDelete
  16. अति गहन सोच ! प्रभावशाली आभिव्यक्ति। हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete