अदाकारों के संग
जिन्दगी चलती चली गई।
आस्था की प्यास
और तपती चली गई।
जीवन्त अभिनय था
मन अभिभूत हो गया।
करुणा में गोते खाते
अनुराग हो गया।
थी रोशनी की आस,
रोशनाई का साथ हो गया।
मणि की चाह...
कौंध काँच की छलती चली गई
आस्था की प्यास
और तपती चली गई।
चिन्ता चिता में
चिन्तन
आहूत हो गया।
अंकुरण तो हुआ,
पर बीज गल गया।
तमतमा के तम से
अतल में ज्वार आ गया।
क्रान्ति उमड़ी
कभी
नयनों से झर गया!
धवल कान्ति प्रेम की,
बिन्दु मे ढ़ूंढती चली गई...
अदाकारों का संग
जिन्दगी देती चली गई।
-विन्दु
थी रोशनी की आस,
ReplyDeleteरोशनाई का साथ हो गया
मणि की चाह...
कौंध काँच की छलती चली गई
बहुत खूबसूरत!
आभार आपका!
ReplyDeleteशुक्रिया
वाह.....
ReplyDeleteबहुत खूब...
चिन्ता चिता में
चिन्तन आहूत हो गया।
अंकुरण तो हुआ,
पर बीज गल गया।
लाजवाब..
अनु
बहुत शुक्रिया अनु जी!
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