क्या चित्र है!
चित्रकार का अहसास हो रहा है
कौन है?
जो कण-कण,कला की आभा बिखेर रहा है
सहमी रही
सिमटी रही
जिस कुहासी धुंध से
ज्यूं चीरने लमकी...
धुंध में ही शीतानन्द लुट रहा है
किसका पसीना?
ओस बन मन को लुभा रहा है
अकुता रहा था दिल
दुनियां की दुश्वारियों में
नज़दीक आई यूं लगा,
कुदरत-ए-आगोश सहलाने बुला रहा है
कौन ?
अनगढ़े भावों को पढ़ रहा है
नादां थी नजरें...
नजारों से ओझल रहीं
कलरवी संगीत
मंजु परिवेश से अंजां रहीं
उर से लखा,हर परिंदा
मोहब्बत-ए-राग गा रहा है
चिलमन की ओट से कौन?
जादू चला रहा है।
-विन्दु
शुभ प्रभात
ReplyDeleteचिलमन का ओट से
जादू चला रहा कौन
कहीं वो तुम तो नहीं
सादर
हा हा!
ReplyDeleteआपका मजाकिया अंदाज अच्छा लगा।
सस्नेह शुक्रिया आदरेया!
सुन्दर रचना
ReplyDeleteYe rachna mujhe mail kar dein Ujesha Times ke liye.
ReplyDeleteOk,i wil do that soon.
ReplyDeleteThanks!