''Solace of tacit emotion, Sight beyond horizon, A Soothing touch in pain, The wings of fancy,a queer way To seek the pearls in ocean.''
Wings of fancy
Monday, December 24, 2012
Poem by Kranti Vajpayee
जब भी करती हूं मैं,
मेरे घर की सफाई
पता नबीं क्या हो जाता है,
मुझे,पुरानी चीजों को देखकर,
चाहती हूं रख लूं
उन सभी को समेटकर
और संजोलूं उन्हे
जो छेड़ देता हैं
सारी अतीत की यादें...
अवचेतन पचल पर अंकित,
वो सारी बातें...
जो दबी हैं अन्त:स्थल में
बंधी हैं एक अनकहे बन्धन से
बन्धन,जो अटूट है
नहीं टूटता काल के प्रहार से
अवरोधों की बयार से
परे है जो
क्रीन्ति के आयाम से
तभी तो एक छोटा सा टेलीवीजन(जो गूंगा सा हो गया है)
भी दिलाता है मुझे याद
जैसे कल की ही हो बात
कितनी विह्वलता से की थी प्रतीक्षा
उसके आगमन की
कितनी खुशियां मनाईं थी
उसके शुभागमन की...
वो दादा जी का बेंत,जो
आज भी याद दिलाता है
उनके जोश भरी चाल की
टूटा हुआ ऐनक
जो कभी शोभा था उनके भाल की
एसी कितनी अमूल्य यादें हैं
बसा हैं इन पुरानी चीजों मे
कैसे भूल जाऊं
वो खुशबू अपनेपन की
जो बसी है इन पुरानी चीजों मे
भाई-बहन का क्षणिक झगड़ा
दोस्तों का प्यार
मां का वात्सल्य
पिता का दुलार...
सभी कुछ तो छिपा है
इन पुरानी चीजों में
कैसे भूल जाउं वो नन्ही-नन्ही सी खुशियां जो
निहित हैं इन पुरानी चीजों मे,
नहीं छोड़ सकती मैं चाहकर भी
मोह इन पुरानी चीजों से...
नही तोड़ सकती जुदा बन्धन
इन पुरानी चीजों से...
सोचती हूं कभी-कभी
यह निर्जीव पुरानी चीजें
कह जाती हैं बहुत कुछ
जो सुन सकती हूं मैं,
दे जाती है एक अहसास जो
महसूस कर सकती हीं मैं
फिर लोग कैसे नही महसूस कर पाते
एहसास जीते जागते रिश्तों के
कैसे भुला देते हैं
माता पिता का अगाध स्नेह का प्रवाह
को...और तोड़ देते हैं,सारे बन्धन
एक पल मे...
कैसे...?
मैं कभी समझ न पाई
और शायद न कभी समझ पाउंगी।''
- क्रांति बाजपेई
हरदोई
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ReplyDeleteI read your and Mradul's poems in Nirjhar Times. It shows that you are writing but not posting here. If you will not post you will miss a good collection of your writings. So,do post here.
ReplyDeleteAs for as your poem is concerned i felt a fire in it. Keep it burning.
Thank u sir,i wll post all poems soon
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