दफ़नाए है ग़म अन्त: में
अश्कों के मोती बिखराएं क्यो?
महफ़ूज खुशी है दुनियां मे
बुलबुले पकड़ने दौड़ें क्यों?
हमें मांजने आती जो,उस
रजनी की कालिख से क्या झुंझलाना
असल कालिमा होती गर,
नवल प्रभात गले लगाता क्यों?
प्यास तपाता मधुमासों हित
उस पतझर से क्या अकुताना
तुष्टि सिला है उसी तपन का
तो मधुबन का जाना वीराना क्यों?
-विन्दु
बसन्त पंचमी की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
ReplyDeleteदिनांक 15 /02/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत खूब
ReplyDeleteबसन्त सी शुभकामनाओं के साथ बहुत धन्यवाद!
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