Wings of fancy

Tuesday, February 26, 2013

'भावों का आकार'

उर के आंगन मे बिखरी है भावों की कच्ची मिट्टी
मेधा की चलनी तो है,हिगराने को कंकरीली मिट्टी
रे मन!
बन जा कुम्भज
संयम नैतिकता के कुशल हस्त से,
दे डालो भावों को
सुन्दर बासन का आकार।
सिंचित करना निज हृदय-वाटिका,
खूब उलीचना और संजोना,
गागर भर-भर मुस्कान लुटाना,
लेना हर दृग से बहने से पहले आंसू,इनमें।
-विन्दु

2 comments:

  1. लयात्मकता, शब्द संयोजन बहुत सुन्दर। बहुत अच्छे से पिरोया है भावों को। बधाई।

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  2. आपको बहुत शुक्रिया आपको महोदय!

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