Wings of fancy

Friday, November 30, 2012

Poem by Vandana Tiwari


रे मन



रे मन,बन जा तू कुशल किसान
युग-युग से जो भारत की शान
मानव जीवन है उर्वर खेत,
संस्कारों से सिंचित कर ले,
निज संस्कृति नैतिकता को,
प्रीति बड़ों की आशीषधुनों को,
बीज बना ले, फिर उपजेंगी
श्रेष्ठ सिद्धियां और विज्ञान
रे मन...
स्वनुसाशन की कवच बनाले
दुर्गुण के तूफानों से बचाले
स्वाभिमान की पौध लगाले
तब लहलाएगी हिन्द फसल
गूंजेगा जग निज गाऽन
रे मन...
ले लेगा दाता नर तन खेत
समय फिसलता ज्यों होरेत
कण-कण को पसीने से डुबोदे
हर क्षण से खुशियां उपजेंगी
श्रम धन है, प्रेम रत्न है...
अमूल्य यही है यदि जग में
पाया तू ने निश्छल मान
रे मन...


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