कल्पना के मुक्त पर से
सीमाओं तक जाऊँगी।
दुश्वारियों से परे, निज
अस्तित्व को मैं पाऊँगी।।
पर हीन पंछी के हृदय
वेदना ने गान गाये ।
बह न पाए अश्क जो भी
वो शब्द सुर ही बन गये।
नभ सिन्धु तक सैर करके
रश्मि मोद चुन लाऊँगी।।
दुनिया के वीराने पथ
दृष्टि नही टिकती जिनपर।
संगीत सजाएंगे,उन
राहों से आहें लेकर।
खुश होंगे वो पत्थर दिल
गीत वही जब गाऊंगी।।
'मम'में'पर-दर्द'जोड़कर
ऋण-ऋण धन बन जाएंगे।
तुष्ट बनेंगे हम दोनों
भोगी भी सुख पाएंगे।
एक दिन सुख-राशि बनकर
मिल 'अनन्त' में जाउंगी।।
'मैं'नही व्यष्टि का द्योतक
साहित्य बसा है इसमें।
'मैं' की दिशा सही हो तो
संसार सजेगा सच में।
हर मैं' उन्नत होने तक
'मैं' को ध्येय बनाऊँगी।।
-विन्दु
(मौलिक/अप्रकाशित)
सीमाओं तक जाऊँगी।
दुश्वारियों से परे, निज
अस्तित्व को मैं पाऊँगी।।
पर हीन पंछी के हृदय
वेदना ने गान गाये ।
बह न पाए अश्क जो भी
वो शब्द सुर ही बन गये।
नभ सिन्धु तक सैर करके
रश्मि मोद चुन लाऊँगी।।
दुनिया के वीराने पथ
दृष्टि नही टिकती जिनपर।
संगीत सजाएंगे,उन
राहों से आहें लेकर।
खुश होंगे वो पत्थर दिल
गीत वही जब गाऊंगी।।
'मम'में'पर-दर्द'जोड़कर
ऋण-ऋण धन बन जाएंगे।
तुष्ट बनेंगे हम दोनों
भोगी भी सुख पाएंगे।
एक दिन सुख-राशि बनकर
मिल 'अनन्त' में जाउंगी।।
'मैं'नही व्यष्टि का द्योतक
साहित्य बसा है इसमें।
'मैं' की दिशा सही हो तो
संसार सजेगा सच में।
हर मैं' उन्नत होने तक
'मैं' को ध्येय बनाऊँगी।।
-विन्दु
(मौलिक/अप्रकाशित)
सीमाहीन उड़ान हो आपकी. सुन्दर सृजन.
ReplyDelete/एक दिन सुख-राशि बनकर
ReplyDeleteमिल 'अनन्त' में जाउंगी।।//
/अति सुन्दर रचना। बधाई।