आज जग की नाड़ियों में
चाह जय की
समाई इस तरह
स्व भी रौंदा,पर को कुचला
न रही पथ की खबर.
अपरिमित,कंटीली राह के
उस छोर पर
जो चमकता लक्ष्य-जय
बस! उसी पर नज़र
पग पगी नीरस थकन
लमकन बिखेरी
शांति झुलसे,क्रांति उपजे
जिस कौंध में
बोध है
जय हो वो कैसी?
भुस पे लीपी सी
कहीं ये जय न हो
इन्द्रियों की तुष्टि,चादरमें ढके
आत्मा के सजल से
नैन न हों
पहचान हो सत लक्ष्य की
आवर्त,पथ के
भास फिर शूल न हों
प्रिय लगे
खोखली जय-गूंज से परे
स्नेह भीगी नाद नीरव
-विन्दु
चाह जय की
समाई इस तरह
स्व भी रौंदा,पर को कुचला
न रही पथ की खबर.
अपरिमित,कंटीली राह के
उस छोर पर
जो चमकता लक्ष्य-जय
बस! उसी पर नज़र
पग पगी नीरस थकन
लमकन बिखेरी
शांति झुलसे,क्रांति उपजे
जिस कौंध में
बोध है
जय हो वो कैसी?
भुस पे लीपी सी
कहीं ये जय न हो
इन्द्रियों की तुष्टि,चादरमें ढके
आत्मा के सजल से
नैन न हों
पहचान हो सत लक्ष्य की
आवर्त,पथ के
भास फिर शूल न हों
प्रिय लगे
खोखली जय-गूंज से परे
स्नेह भीगी नाद नीरव
-विन्दु
पहचान हो सत लक्ष्य की
ReplyDeleteआवर्त,पथ के
भास फिर शूल न हों
प्रिय लगे
खोखली जय-गूंज से परे
स्नेह भीगी नाद नीरव
...बहुत सुन्दर मनोभाव ..
सुन्दर प्रस्तुति
आदरणीया कविता जी आपकी उपस्थिति से मेरा लेखन सार्थक हुआ।
Deleteआपका बहुत धन्यवाद।
बढ़िया लेखन व रचना , आ. वंदना जी धन्यवाद !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
नया ब्लॉग - ~ ज़िन्दगी मेरे साथ - बोलो बिंदास ! ~ ( एक ऐसा ब्लॉग -जो जिंदगी से जुड़ी हर समस्या का समाधान बताता है )
शुक्रिया आशीष भाई।
Deleteसादर
अर्थपूर्ण रचना ... शिपक और भाषा का चयन कमाल का ...
ReplyDeleteआपका बहुत आभार आदरणीय नासवा जी।
Deleteसादर
आपका हार्दिक आभार आदरणीय।
ReplyDeleteसादर
उपरोक्तानुसार लेखन में कही न कही इसमे दृढ निश्चिचता, उम्मीद की किरण उजागर करने हेतु अतुल्यनीय सराहनीय के पात्र है।
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