(बहर-2122 2122 2122)
लक्ष्य क्या जो खोजते हम दौड़ते हैं।
है कहाँ ये आज तक ना जानते हैं ।।
ढूंढ साधन,साधने को लक्ष्य सोंचा
ना सधा ये, सब स्व को ही रौंदते हैं।
जग छलावे में भटकते इस तरह हम
शांति के हित शांति खोते भासते हैं।
हो समर्पण पूर्ण या लब सीं लिए हों,
क्या शिलाए भी प्रेम को सीलते है ?
ना पहुंचू पर मुझे हो भान तो वह
तब बढेंगे, आज तो बस खोजते हैं।।
-विन्दु
सुन्दर सृजन.
ReplyDeleteआदरणीय रंजन जी आपकी सराहना से रचना सार्थक हुई।
Deleteमार्गदर्शन की सादर आकांक्षी हूं।
सादर
आपका बहुत शुक्रिया आदरेया।
ReplyDeleteबहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....
ReplyDeleteसादर!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गजल के लिए बधाई आद्र्नियाँ वंदना तिवारी जी
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