Wings of fancy

Tuesday, February 25, 2014

भान करा दे


 भंवरों ने घेरा
पहुंचाया अवसादों की गर्तो में
संयोग बड़े ही 
सुखकर थे जिनके
उनके ही वियोग भुजंग बने
लगे डसने

कौन शक्ति?
जो हर क्षण
अपनी ही ओर हमें
खींच रही
कल से खींचा,आज छुड़ाया
जो आयेगा
वो भी छुटेगा
नश्वरता में इक दिन
जीवन डूबेगा

क्षणभंगुरता से
हो विकल हृदय
साश्वत खोज में
जब भी तड़फा है
मोहवार्तों ने आलिंगन कर
जिज्ञासु तड़फ को मोड़ा है।

खार उदधि की
 हर विंदु में
रुचिकर रस का भास हुआ
भास भास ही सिद्ध हुआ
सत कुछ भी तो दिखा नहीं

हे अविनाशी!
अविनाशी कर के
 भान करा देमेरी तड़फ को
जिसकी चिंगारी का
कुछ बूंदों ने पल में नाश किया।   

 -विन्दु

6 comments:

  1. बहुत ही अलग भाव . जीवन यात्रा के गहन क्षणों को सार्थक शब्दों में पिरोकर रखा दिया है . आपके साहित्य साधना को प्रणाम .

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  2. आपका हार्दिक आभार आदरणीय🙏🙏

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  3. विन्दु को सिन्धु से मिलाने की ललक लिए हुए आपकी सारगर्भित पंक्तियाँ किसी की भी बन्द आंखों को खोलने की क्षमता अपने में समाहित किये हैं । माँ शारदे के ऐसे ही पुत्रों/पुत्रियों को समाज और देश को आवश्यकता है ।

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    1. विन्दु को सिन्धु से मिलाने की ललक लिए हुए आपकी सारगर्भित पंक्तियाँ किसी की भी बन्द आंखों को खोलने की क्षमता अपने में समाहित किये हैं । माँ शारदे के ऐसे ही पुत्रों/पुत्रियों को समाज और देश को आवश्यकता है

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  4. आपके उत्साहवर्धक शब्दों ने मन को बहुत बल दिया है फूफा जी,कृपया रचना को उन्नत करने के लिए सुझाव भी दीजियेगा🙏🙏
    सादर आभार आपका।

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