भंवरों ने घेरा
पहुंचाया अवसादों की गर्तो में
संयोग बड़े ही
सुखकर थे जिनके
उनके ही वियोग भुजंग बने
लगे डसने
कौन शक्ति?
जो हर क्षण
अपनी ही ओर हमें
खींच रही
कल से खींचा,आज छुड़ाया
जो आयेगा
वो भी छुटेगा
नश्वरता में इक दिन
जीवन डूबेगा
क्षणभंगुरता से
हो विकल हृदय
साश्वत खोज में
जब भी तड़फा है
मोहवार्तों ने आलिंगन कर
जिज्ञासु तड़फ को मोड़ा है।
खार उदधि की
हर विंदु में
रुचिकर रस का भास हुआ
भास भास ही सिद्ध हुआ
सत कुछ भी तो दिखा नहीं
हे अविनाशी!
अविनाशी कर के
भान करा देमेरी तड़फ को
जिसकी चिंगारी का
कुछ बूंदों ने पल में नाश किया।
-विन्दु
बहुत ही अलग भाव . जीवन यात्रा के गहन क्षणों को सार्थक शब्दों में पिरोकर रखा दिया है . आपके साहित्य साधना को प्रणाम .
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार आदरणीय🙏🙏
ReplyDeleteविन्दु को सिन्धु से मिलाने की ललक लिए हुए आपकी सारगर्भित पंक्तियाँ किसी की भी बन्द आंखों को खोलने की क्षमता अपने में समाहित किये हैं । माँ शारदे के ऐसे ही पुत्रों/पुत्रियों को समाज और देश को आवश्यकता है ।
ReplyDeleteविन्दु को सिन्धु से मिलाने की ललक लिए हुए आपकी सारगर्भित पंक्तियाँ किसी की भी बन्द आंखों को खोलने की क्षमता अपने में समाहित किये हैं । माँ शारदे के ऐसे ही पुत्रों/पुत्रियों को समाज और देश को आवश्यकता है
Deleteआपके उत्साहवर्धक शब्दों ने मन को बहुत बल दिया है फूफा जी,कृपया रचना को उन्नत करने के लिए सुझाव भी दीजियेगा🙏🙏
ReplyDeleteसादर आभार आपका।
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