Wings of fancy

Friday, April 26, 2013

'आज'

उद्येश्य बदल गया
भावों की पहरन,शब्द
का परिमाण बदल गया।
साहित्य,दर्पण समाज का
धुंधला हो गया
प्रतिद्वंदी तलवार का,कलम
लोकेष्णा का दास बन गया
बाढ है,तो बारिश भी है
आऽज...
भावेश का बहाव बदल गया
साहित्य का,
उद्येश्य बदल गया।
परिवेश बदल गया।।
परिवेश बदल गया
-विन्दु

5 comments:

  1. बहुत ही सार्थक प्रस्तुति,आभार.

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    1. शुक्रिया आदरणीय राजेन्द्र जी

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  2. दुनिया परिवर्ताल्शील है ,जो कल था वो आज नहीं है ,जो आज है वो कल नहीं रहेगा , समय के साथ सबको बदलना पड़ेगा !
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest postजीवन संध्या
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    1. आपका लयात्मक आगाज़ बहुत अच्छा लगा।
      आदरणीय कविता में मेरा मतलब है कि साहित्य का दायरा सीमितता को प्राप्त हो स्वयं की लोकप्रियता तक ही सीमित रह गया है,समाज के उत्थान एवं हित की बात अब कम ही दीखती है।कुछ सकारात्मक परिवर्तन भी हुए हैं जिसे मेरा शत्-शत् नमन है।
      महोदय स्नेह बनाए रखें।
      सादर

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  3. आपका बहुत आभार आदरणीय अरुन जी।

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