उद्येश्य बदल गया
भावों की पहरन,शब्द
का परिमाण बदल गया।
साहित्य,दर्पण समाज का
धुंधला हो गया
प्रतिद्वंदी तलवार का,कलम
लोकेष्णा का दास बन गया
बाढ है,तो बारिश भी है
आऽज...
भावेश का बहाव बदल गया
साहित्य का,
उद्येश्य बदल गया।
परिवेश बदल गया।।
परिवेश बदल गया
-विन्दु
बहुत ही सार्थक प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीय राजेन्द्र जी
Deleteदुनिया परिवर्ताल्शील है ,जो कल था वो आज नहीं है ,जो आज है वो कल नहीं रहेगा , समय के साथ सबको बदलना पड़ेगा !
ReplyDeleteडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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आपका लयात्मक आगाज़ बहुत अच्छा लगा।
Deleteआदरणीय कविता में मेरा मतलब है कि साहित्य का दायरा सीमितता को प्राप्त हो स्वयं की लोकप्रियता तक ही सीमित रह गया है,समाज के उत्थान एवं हित की बात अब कम ही दीखती है।कुछ सकारात्मक परिवर्तन भी हुए हैं जिसे मेरा शत्-शत् नमन है।
महोदय स्नेह बनाए रखें।
सादर
आपका बहुत आभार आदरणीय अरुन जी।
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